10+ बद्रीनाथ में घूमने की जगह | बद्रीनाथ सम्पूर्ण यात्रा जानकारी
बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित हिंदुओं और जैनों का धार्मिक तीर्थ स्थल है। भगवान विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ मंदिर भारत के चार धामों में से एक है। हिमालय पर्वत श्रृंखला में समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भगवान विष्णु के दर्शन करने के लिए लाखों की भीड़ में भक्त जाते हैं और दर्शन करके अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की दरखास्त लगाते है। लोगों की मान्यता है की बद्रीनाथ के दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। यदि आप बद्रीनाथ की यात्रा का विचार बना रहे हैं तो लेख में आपको बद्रीनाथ धाम की यात्रा से जुड़ी संपूर्ण जानकारी और बद्रीनाथ में घूमने की जगह (Badrinath Me Ghumne Ki Jagah) के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
बद्रीनाथ मंदिर हिंदुओ के चार धामों में से एक है। चार धाम है पुरी, द्वारका, बद्रीनाथ, और रामेश्वरम । भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करने हेतु भक्तो के लिए मंदिर के कपाट 6 महीनों के लिए ही खोले जाते है। अप्रैल से नवंबर माह के बीच ही मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। सर्दियों के मौसम में बर्फ गिरने के कारण मंदिर को बंद कर दिया जाता है। अगर आप भगवान बद्रीनाथ की यात्रा में जाना चाहते हैं तो अप्रैल और नवंबर के बीच तीर्थ यात्रा का प्लान बना सकते हैं।
भगवान बद्रीनाथ का मंदिर इतना खास है की इसका वर्णन हिंदू धर्म ग्रंथो और पुराणों में तक मिलता है। स्कंध पुराण ग्रंथ में भी लिखा है बद्रीनाथ जैसा तीर्थ स्थल कही नही है और न होगा। कहते है बद्रीनाथ की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती जब तक केदारनाथ की यात्रा न कर ली जाए। उत्तराखंड में बद्रीनाथ मंदिर को मिलाकर पांच मंदिरो का समूह है जिन्हें पंच बद्री के नाम से जाना जाता है। चलिए जय बद्री विशाल से यात्रा का वर्णन शुरू करते हैं।
बद्रीनाथ में घूमने की जगह : Badrinath Me Ghumne Ki Jagah
बद्रीनाथ मंदिर की विशेष बातें?
बद्रीनाथ मंदिर हिंदुओ के चार धामों में से एक प्राचीन मंदिर है जो नर नारायण पहाड़ के बीच स्थित है। यह मंदिर 9वी शताब्दी का बताया जाता है। जिसे हिंदू धर्म के गुरु आदि शंकराचार्य ने 8वी शताब्दी में भगवान विष्णु की 1 मीटर लंबी मूर्ति स्थापित की थी।
मंदिर उत्तर भारत में होने के बावजूद मंदिर के पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से नंबूदिरी समुदाय के ब्राह्मण ही पूजा और अनुष्ठान करते है। बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु स्वयं बद्री नारायण रूप में तप कर रहे हैं। मान्यता है जो भी भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करने जाता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।
बद्रीनाथ मंदिर का नामकरण हिमालय पर्वत श्रृंखला में पाए जाने वाले बेर के पेड़ो के कारण पड़ा था। लेकिन वर्तमान में बेर के पेड़ देखने को नहीं मिलते। बद्रीनाथ में माता मूर्ति का मेला दर्शनीय है। साथ ही जून महीने में 8 दिन तक आयोजित किए जाने वाला बद्री केदार का त्योहार है।
बद्रीनाथ मंदिर के कपाट अक्टूबर नवंबर माह में भैया दूज के दिन 6 महीने के लिए पूरी तरह से बंद कर दिए जाते है। कपाट बंद करने का अनुष्ठान पुजारियों द्वारा किया जाता है। इसके बाद मंदिर की मूर्ति को 60 किमी दूरी पर स्थित ज्योतिर्मठ के नरसिंह मंदिर में 6 महीने के लिए स्थापित कर दिया जाता है।
जिस समय मंदिर के कपाट को बंद किया जाता है उस समय एक दीपक में पर्याप्त घी भरकर अखंड ज्योति को जलाकर मंदिर बंद कर दिया जाता है। और अप्रैल मई महीने में अक्षय तृतीया के दिन मंदिर के कपाट खोलने का अनुष्ठान किया जाता है। 6 महीने कपाट बंद रहने के बाद भी अखंड ज्योति जागृति रहती है। अखंड ज्योति को देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
भगवान का नाम बद्रीनाथ क्यों पड़ा?
बद्रीनाथ मंदिर के पीछे पौराणिक कहानी है एक बार नारद मुनि सीर सागर में भगवान विष्णु के दर्शन के लिए निकल पड़ते हैं जब वह नारायण के दर्शन करते हैं तो देखते हैं भगवान शेषनाग पर विश्राम कर रहे हैं और माता लक्ष्मी उनकी सेवा में चरण दवा रही हैं। नारद जी को देख कर पसंद नही आया नारद मुनि ने भगवान को कहा हे परम पिता परमेश्वर आप तो कार्य करेंगे वह संसार के लिए आदर्श होगा और सम्पूर्ण विश्व के लोग आपके कार्यों का अनुसरण करेंगे और यदि आप इस तरह शेष शय्या में लेटकर आराम करते रहेंगे तो बाकी लोग आपकी ही तरह कार्य करेंगे।
नारद मुनि की बात सुनकर भगवान विष्णु को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने निश्चय किया की बिलासता को त्याग कर वह योग तपस्या में लीन हो जायेंगे तब उन्होंने माता लक्ष्मी को बहाने से नाग कन्याओं के पास भेज दिया और भगवान विष्णु हिमालय पर्वत में जाकर दिव्या स्थान खोजने लगे और उचित स्थान मिलने के बाद तपस्या में लीन हो गए। जब लक्ष्मी माता को घर वापस आने पर नारायण नही मिले तो वह व्याकुल हो उठी और भगवान को खोजने के लिए निकल पड़ी और केदारखंड पर पहुंची उन्होंने देखा विष्णु भगवान एक खुली जगह पर आसन लगाए बैठे हैं। जहां आंधी तूफ़ान और बर्फबारी पड़ रही थी। माता लक्ष्मी को रहा नही गया और उन्होंने ऊपर बद्री वृक्ष का रूप धारण कर लिया ताकि प्राकृतिक विपदाओं से बच सके। भगवान जब तपस्या से उठे तो उन्होंने अपने ऊपर बद्री वृक्ष को देखा तब उन्होंने कहा की हे देवी आज के बाद यह स्थान बद्री कहलाएगा और विष्णु भगवान को नाथ के रूप में बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है।
1. बद्रीनाथ मंदिर (Badrinath Temple)
बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित भारत के चार धामों में से एक है। हर साल लाखों की संख्या में भक्त भगवान बद्री के दर्शन करने के लिए यात्रा में शामिल होते है। पास में ही नारद कुंड और तप्त कुंड में स्नान करके भगवान के दर्शन करके अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की अर्जी लगाते है। मंदिर में भगवान बद्री विशाल पद्मासन में स्वयं नारायण रूप में विद्यमान हैं। बद्रीनाथ की मूर्ति शालिग्राम शिला से बनी हुई हैं जिसका कुछ अंश खंडित है।
भक्त भगवान बद्रीनाथ को गरी का गोला, मिश्री, चने की कच्ची दाल, वन तुलसी की माला, प्रसाद के रूप में अर्पित करते है। बद्रीनाथ मंदिर भारत के 108 मंदिरों में गिना जाता है जिन्हें दिव्या देशम कहते हैं। प्रभु के दर्शन करने के लिए मंदिर के कपाट 04:00 बजे से 11:3 बजे और शाम 3 बजे से 9 बजे तक खुले रहते हैं।
12 बजे से 3 बजे तक मंदिर बंद रहता है। बद्रीनाथ मंदिर चार धाम की यात्रा में सबसे आखिरी पड़ाव माना जाता है। चार धाम यात्रा का आरंभ उड़ीसा के पुरी मंदिर से होते हुए दक्षिण में रामेश्वरम और फिर गुजरात के द्वारका से होकर बद्रीनाथ में खत्म होती है।
भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करने के बाद परिसर में मौजूद महालक्ष्मी मंदिर, नर नारायण जी का मंदिर, हनुमान जी का मंदिर, और क्षेत्रपाल जी का मंदिर है। उनमें भी आप दर्शन कर सकते हैं।
2. चरण पादुका
चरणपादुका बद्रीनाथ मंदिर से 3 किमी की दूर नर नारायण पर्वत पर स्थित एक शिलाखंड है जो पैरो के आकार का बना हुआ है। लोगों की मान्यता है की यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान शिला पर बन गए हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है जब विष्णु भगवान वैकुंठ से उतरे थे तब सबसे पहले कदम रखने से चट्टान पर पैरो के दिव्य निशान बन गए थे। भगवान विष्णु का आशीर्वाद लेने के लिए भारी संख्या में भक्तो का आवागमन होता रहता है। बद्रीनाथ से ट्रेकिंग करते हुए 1 से 2 घंटे में पहुंच सकते है।
3. ब्रह्मकपाल
ब्रह्मा कपाल अलकनंदा नदी के किनारे स्थित धार्मिक पवित्र घाट है। ब्रह्मा कपाल पर मान्यता है पूजा पाठ करने से पूर्वजों को शांति मिलती है। तथा जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है। भारत के विभिन्न शहरों से लोग अपने पूर्वजों को शांति और मोक्ष प्राप्त हो इसलिए पिंडदान देने का अनुष्ठान करते है। पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए ब्रह्मकपाल एक पवित्र स्थल है।
4. वसुधारा जलप्रपात (Vasudhara Falls)
वसुधारा जलप्रपात बद्रीनाथ मंदिर से 8.5 किमी दूर और माणा गांव से 5 किमी की दूरी पर स्थित एक पवित्र झरना है। 145 मीटर की ऊंचाई से गिरता हुआ जल अलकनंदा नदी में समाहित हो जाता है। ऊंचाई से गिरता झरना दूध के समान दिखता प्रतीत होता है।
इस झरने का बहुत ही पौराणिक महत्व है। वसुधारा जलप्रपात बहुत ही रहस्यमय है। कहते है जलप्रपात का पानी मन से अशुद्ध लोगों के शरीर पर नही पड़ता। मानसून सीजन में झरने की सुंदरता देखने लायक है। झरने के पानी में औषधीय गुण भी पाए जाते है। जिससे त्वचा संबंधित रोग ठीक हो जाते हैं।
बद्रीनाथ के आसपास में दर्शनीय स्थल
- नारद कुंड
- व्यास गुफा
- भीमपुल
- नीलकंठ चोटी
- पांडुकेश्वर
बद्रीनाथ के दर्शन हेतु कौन से महीने में जाना चाहिए?
सर्दियों में बर्फ गिरने और अत्यधिक ठंड होने से बद्रीनाथ क्षेत्र का वातावरण अनुकूल नहीं रहता इसीलिए बद्रीनाथ मंदिर के कपाट साल में 6 महीने के लिए बंद रहते है। बद्रीनाथ मंदिर के कपाट अप्रैल से नवंबर के बीच खुले रहते है। बद्रीनाथ धाम की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय मई और जून महीने का रहता है। मई और जून के महीने में भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते है।
वही मानसून सीजन में बद्रीनाथ की यात्रा करना सही नहीं रहता है। भारी बारिश की वजह से जगह जगह भूस्खलन होता रहता है जिससे रोड़ ब्लॉक हो जाते हैं और आंधी तूफान आने से पेड़ गिर जाने से आवागमन बाधित हो जाता है। जिससे यात्रियों को आने जाने में असुविधा होती है।
सर्दियों के मौसम में कपाट बंद होने से पहले सितंबर और अक्टूबर महीना भी बद्रीनाथ धाम की यात्रा के लिए उचित रहता है। दीपावली में भैयादूज से पहले दर्शन कर सकते हैं। दर्शन करने और गर्मियों से बचने के लिए ज्यादातर पर्यटक बद्रीनाथ की यात्रा गर्मियों में करना पसंद करते है।
बद्रीनाथ कैसे पहुंचे?
बद्रीनाथ धाम पहुंचने के लिए कोई डायरेक्ट रास्ता नही है। केदारनाथ धाम की तरह बद्रीनाथ का सफर कठिन नहीं है। बद्रीनाथ धाम की यात्रा को जारी करने के बहुत से आसान रास्ते है। बद्रीनाथ रानीखेत पहुंचकर सड़क मार्ग से होते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं।
या फिर हरिद्वार के रास्ते देवप्रयाग पहुंचकर कई जगह साधन बदलते हुए बद्रीनाथ तक का सफर करना पड़ता है। कोटद्वार पौढ़ी गढ़वाल होते हुए पहुंच सकते हैं। बद्री धाम पर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग, ट्रेन और हवाई जहाज का चुनाव कर सकते है।
ट्रेन से बद्रीनाथ का सफर
ट्रेन से बद्रीनाथ की यात्रा का सफर तय के लिए हरिद्वार पहुंचना है फिर आगे का सफर जारी रखते हुए बद्रीनाथ तक जाना है। हरिद्वार पहुंचकर रेलवे स्टेशन के बाहर बस, जीप, टैक्सी जैसे साधन से जोशीमठ जाना होता है। हरिद्वार से जोशीमठ 272 किमी की दूरी पर है।
यह दूरी तय करने में 12 से 15 घंटे का समय लग जाता है जोशीमठ पहुंचकर सड़क मार्ग द्वारा बद्रीनाथ तक पहुंच सकते हैं। जोशीमठ से बद्रीनाथ 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जोशीमठ से बद्रीनाथ सड़क मार्ग आपके सफर को आरामदायक बनाता है। रास्ते में ही हनुमान चट्टी में दर्शन कर सकते है।
सड़क मार्ग द्वारा बद्रीनाथ कैसे पहुंचे?
सड़क द्वारा यदि आप बद्रीनाथ की यात्रा करना चाहते है तो दिल्ली, चंडीगढ़, जैसे शहरों से बस द्वारा उत्तराखंड के हरिद्वार या ऋषिकेश में पहुंचकर आगे का सफर जारी रखते हुए बद्रीनाथ धाम पहुंच सकते हैं। दिल्ली के कश्मीरी गेट आईएसबीटी से नियमित रूप से रोजाना बस चलती रहती हैं।
बद्रीनाथ का सफर हवाई जहाज से कैसे करे?
हवाई जहाज द्वारा यदि करना चाहते हैं तो देहरादून में जॉली ग्रांट हवाई अड्डा स्थित है। अपने शहर से देहरादून फ्लाइट्स में पहुंच जायेंगे फिर सड़क मार्ग द्वारा आगे का सफर कर सकते हैं। देहरादून हवाई अड्डे से जोशीमठ के लिए बस मिल जायेगी जो 10 से 12 घंटे में जोशीमठ पहुंचा देती है। जोशीमठ पहुंचकर आगे बस द्वारा बद्रीनाथ पहुंच सकते हैं।
बद्रीनाथ धाम की यात्रा का चरण
बद्रीनाथ की यात्रा का सफर स्टेप बाई स्टेप बताया है।
पहला दिन
बद्रीनाथ धाम की यात्रा के पहले दिन आप अपने घर से हरिद्वार के लिए निकल जाएं हरिद्वार आप सड़क मार्ग, रेल गाड़ी का चुनाव कर सकते है।
दूसरा दिन
यात्रा के दूसरे दिन हरिद्वार पहुंचकर सुबह सुबह रेलवे स्टेशन के बाहर जोशीमठ के लिए निकल सकते हैं। जोशीमठ जाने के लिए बस, जीप में शेयरिंग करके पहुंच सकते हैं। आप 12 से 15 घंटे के बीच जोशीमठ पहुंच जायेंगे। इसके बाद आप जोशीमठ में स्टे ले सकते हैं।
तीसरा दिन
अगली सुबह जल्दी उठकर आप जोशीमठ से बद्रीनाथ के लिए निकल जाएं बद्रीनाथ 2 से 3 घंटे में आप बस, जीप टैक्सी से पहुंच सकते हैं। बद्रीनाथ के दर्शन करे दर्शन करते हुए लगभग शाम हो जाएंगी इसलिए वापस जोशीमठ में आकर एक रात स्टे करे और अगली सुबह हरिद्वार पहुंचकर अपने घर वापस जाने की योजना बना सकते हैं या फिर उत्तराखंड के अन्य पर्यटन स्थलों का भ्रमण कर सकते हैं।
बद्रीनाथ के दर्शन कैसे करें?
बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए आप पैदल चलकर मंदिर तक पहुंच सकते हैं यदि चलने में समस्या है तो पिट्ठू सवारी की मदद से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। नारद कुंड में स्नान करके लाइन पर लग जाना है। भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए भक्तो की लम्बी लाइन लगती है। भगवान को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए पंच मेवा ले सकते हैं। लाइन में लग कर धीरे चलते हुए मंदिर पहुंचकर आप दर्शन कर लेंगे।
बद्रीनाथ में रुकने की व्यवस्था
बद्रीनाथ धाम की यात्रा में रुकने के लिए बहुत से होटल और रिसॉर्ट मिल जायेंगे। आप चाहें तो जोशीमठ में या फिर बद्रीनाथ के आसपास रूम ले सकते हैं। GMVN की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन रूम बुक कर सकते हैं। बद्रीनाथ की यात्रा से एक या दो महीने पहले रूम बुक कर ले। इसके अलावा बदरीनाथ में ठहरने के लिए बहुत से आश्रम और डोरमेट्री मिल जायेगी।
बद्रीनाथ धाम के लिए रजिस्ट्रेशन
बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर जाने से पहले पंजीकरण करवाना अनिवार्य होता है। पंजीकरण GMVN की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर करना होता है। रजिस्ट्रेशन करने की प्रक्रिया बिलकुल निशुल्क है।
बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर जरूरी समान
बद्रीनाथ की यात्रा पर जा रहे हैं तो अपने साथ पानी की बॉटल, आवश्यक दवाएं, और पहनने के लिए गर्म कपड़े, यात्रा के बजट अनुसार पैसा साथ लेकर जाएं साथ ही खाने पीने का सामान बिस्कुट, नमकीन।
FAQs
1. बद्रीनाथ में चढ़ाई कितनी है?
बद्रीनाथ मंदिर समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर गढ़वाल मंडल पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित है।
2. बद्रीनाथ में कौन से भगवान की मूर्ति है?
बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है। स्वयं भगवान विष्णु बद्रीनारायण रूप में विद्यमान है।
3. बद्रीनाथ किस जिले में स्थित है?
बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित हिंदुओं और जैनों का धार्मिक तीर्थ स्थल है। भगवान विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ मंदिर नर नारायण पर्वत के बीच स्थित भारत के चार धामों में से एक है। हिमालय पर्वत श्रृंखला में समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर के कारण आसपास की बस्ती को बद्रीनाथ नगर कहा जाता है।
4. भारत का आखिरी गांव कौन सा है?
भारत का एकमात्र आखिरी गांव चीनी तिब्बत सीमा के नजदीक माणा गांव है। भारत के अंतिम गांव के रूप में प्रसिद्ध माणा गांव सरस्वती नदी के किनारे स्थित है। गांव को भेटिया जनजाति द्वारा बसाया गया था।
निष्कर्ष
हिंदू सनातन धर्म के चार धामों में से पवित्र धाम बद्रीनाथ कलयुग में मनुष्यों को दिव्य अलौकिक दर्शन प्रदान करता हुआ शुभायमान है। प्रिय पाठक आज के विशेष लेख में बद्रीनाथ की यात्रा और आसपास घूमने की जगह (Badrinath Me Ghumne Ki Jagah) का वर्णन किया है। मुझे आशा ही नहीं वल्कि विश्वास है की मेरे द्वारा बताई गई जानकारी यात्रा को आसान बनाने में मदद करेंगी।