घाटमपुर में घूमने की जगह | मां कुष्मांडा के दर्शन
घाटमपुर भारत में उत्तरप्रदेश राज्य के कानपुर जिले में स्थित तहसील है। जहां पर आप घूमने के लिए जा सकते हैं। घाटमपुर को कानपुर जिले की सबसे बड़ी तहसील का दर्जा प्राप्त है। 20 किलोमीटर के बाद हमीरपुर जिला है। जहां यमुना नदी हमीरपुर और घाटमपुर को विभाजित करती है। घाटमपुर एक विकासशील कस्बा है जो धीरे धीरे विकसित होने के स्थान पर है। लेख में घाटमपुर और आसपास क्षेत्र के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
आपको बता दें घाटमपुर कोई प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नही है लेकिन घाटमपुर कस्बे की लोकप्रियता मां कुुुुष्मांडा देवी मंदिर के कारण सबसे ज्यादा है। कुष्मांडा देवी का मंदिर आसपास के जिलों में बहुत ही प्रसिद्ध है। नवरात्रि के दिनों में मंदिर परिसर हजारों भक्तों से भरा रहता है। 9 दिनो तक मंदिर परिसर में विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है।
नवरात्रि में लोग अपने वैवाहिक और धार्मिक कार्यक्रम की शुरुआत मां कुष्मांडा के दर्शन करने के बाद आयोजित करते हैं। अगर कभी कानपुर आने का मौका मिलता है तो माता के दर्शन करने के लिए जा सकते हैं। कानपुर से घाटमपुर महज 35 किमी दूर पड़ता है। मां कुुुुष्मांडा देवी का मंदिर कानपुर-सागर हाईवे के बिलकुल किनारे बना हुआ है।
घाटमपुर में घूमने की जगह | Ghatampur Me Ghumne Ki Jagah
घाटमपुर तहसील का संक्षिप्त परिचय
मान्यता है की घाटमपुर की स्थापना राजा घाटम देव ने की थी। घाटम देव के नाम पर ही घाटमपुर नाम पड़ा। Ghatampur कानपुर जिले का ही हिस्सा है। लेकिन कानपुर नगर और कानपुर देहात के विभाजन के बाद घाटमपुर को कानपुर नगर में ही पंजीकृत किया गया। हालाकि घाटमपुर कोई प्रसिद्ध तीर्थ स्थल नही है। परन्तु मां कुष्मांडा के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ हमेशा लगी रहती है।
घाटमपुर में घूमने की जगह संक्षिप्त परिचय
- कुष्मांडा देवी मंदिर घाटमपुर
- भीतरगांव में गुप्तकाल का मंदिर
- सजेती का बिहारेश्वर मंदिर
- आस्तिक बाबा मंदिर कोरियां घाटमपुर
1. मां कुष्मांडा देवी मंदिर (Kush Manda Devi Mandir Ghatampur)
घाटमपुर में दर्शन के लिए पूरब में मां कुष्मांडा देवी का प्राचीन मंदिर है। मां कुष्मांडा का प्राचीन मंदिर हिंदुओ की आस्था का केंद्र है। मां कुष्मांडा नवरात्रि में चौथी देवी के रूप में पूजी जाती हैं। नवरात्र के पवित्र दिनों में मां कुष्मांडा देवी मंदिर में हजारों लोगों की भीड़ जमा होती है। घाटमपुर के दर्शनीय स्थल के तौर पर कुष्मांडा देवी मंदिर एक अच्छा विकल्प है।
मां कुष्मांडा देवी मंदिर में नवरात्रि के चौथे दिन घाटमपुर में होने वाला दीपदान का पर्व दर्शनीय है। यह मंदिर कई सौ साल पुराना बताया जाता है।कार्तिक पूर्णिमा में कूष्मांडा देवी मंदिर प्रांगण में मेले का आयोजन होता है। साथ ही हर वर्ष आने वाली महाशिव रात्रि के अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती की बारात निकाली जाती है।
जिसको देखने के लिए अलग राज्यों और जिले से लोग आते है। महाशिवरात्रि के दिन घाटमपुर के बाज़ार और सभी दुकानें बंद रहती है और रोड़ पर 50 हज़ार से ज्यादा लोग बारात देखने के लिए आते हैं। ढ़ोल बाजे और डीजे की धुन में भोले के दीवाने नचाते हुए शिव बरात का गवाह बनते हैं।
मां कुष्मांडा देवी मंदिर के बारे में कहा जाता है। पुराने समय में घाटमपुर के जंगल में कुड़हा नाम का एक चरवाहा गाय चराने जाता था। उसकी गाय चरते चरते एक टीले के पास आकर रुक जाती थी और गाय के थनों से दूध अपने आप टीले में गिरता रहता था।
हर रोज ऐसा होता देख ग्वाले ने गांव वालों को यह बात बताई और इसके बाद उस स्थान की पूजा होने लगी। चरवाहे द्वारा बताई गई जगह को मंदिर बना दिया गया। इसीलिए मंदिर को कुड़हा माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। शहर के दक्षिण दिशा में एक ऐतिहासिक बौद्ध मंदिर भी है जिसे बाबा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
कुष्मांडा देवी में धार्मिक कार्यक्रम
- कुष्मांडा देवी मंदिर में नवरात्रि के दिनों पर लोग धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिन लोगों की मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं वह लोग अपनी मान्यता अनुसार पूजा हवन करते है।
- नवरात्रि में लोग मां कुष्मांडा को भोग लगाकर कर भंडारा आयोजित करते हैं। भंडारे का प्रसाद पाने के लिए दूर दूर से भक्त आते हैं।
- बहुत से लोग अपनी श्रद्धा अनुसार कन्या भोज भी करते हैं जिसमें कन्याओं यानी की छोटी लड़कियों को भोजन करवाते हैं। सनातन संस्कृति में लड़कियों को देवी का रूप माना जाता है जिन्हे भोजन करवा कर पुण्य प्राप्त होता है।
- मान्यतानुसार लोग अपने बच्चों का मुंडन भी करवाते हैं।
2. भीतरगांव में गुप्तकाल का प्राचीन मंदिर (Bhitar Gaon Ka Mandir)
घाटमपुर से 13 किलो मीटर दूर एक भीतरगांव नामक जगह है। जहां पर एक गुप्तकालीन प्राचीन मंदिर है जो गुप्त शासकों द्वारा बनवाया गया था। मंदिर में ऐसा देखने को मिला है की बारिश होने से पहले ही मंदिर से पानी की बूंदे टपकने लगती है। यह संकेत होता है की बारिश आने वाली है। इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों को घूमने ज़रूर जाना चाहिए। हालांकि मंदिर का कुछ अंश शेष बचा है बाकी मंदिर की सही से देख रेख न हो पाने के कारण और समय के साथ साथ यह मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुका है।
3. सजेती का बिहारेश्वर मंदिर
बिहारेश्वर मंदिर घाटमपुर से 12 किलोमीटर दूर अज्योरी (सजेती) गांव के पास घाटमपुर सागर मार्ग पर बना हुआ है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। बिहारेश्वर महादेव मंदिर को दिल्ली सम्राट अकबर के मंत्री बीरबल ने बनवाया था। कहा जाता है दिल्ली में औरंगजेब की कैद में रखे गए मराठा सरदार छत्रपति शिवाजी जेल से भाग जानें के बाद इसी मंदिर में भेष बदलकर छुपे थे।
हर साल महाशिव रात्रि के पावन अवसर पर मंदिर परिसर में भव्य मेला लगता है। मेले में शरीक होने के लिए दूर गांव गांव से बड़ी संख्या में लोग जाते हैं। शिवरात्रि के दिन कांवड़िए कांवड़ लेकर भगवान शिव को जल अर्पित करके दर्शन करते है और जीवन में सभी कष्टों से मुक्त होने की कामना करते हैं। शिवरात्रि के दिन मंदिर प्रांगण भक्तो से भर जाता है।
4. आस्तिक बाबा मंदिर कोरियां घाटमपुर
आस्तिक बाबा मंदिर कोरियां गांव में हिंदुओ का प्रसिद्ध मंदिर है। आस्तिक बाबा को सांपो का देवता माना जाता है। मंदिर की ख्याति आसपास के 12 गांव से लेकर अन्य जिलों तक है। भगवान आस्तिक बाबा पर लोगों की अपार श्रद्धा है गांव और क्षेत्र में धार्मिक और वैवाहिक कार्यक्रम की शुरुआत बाबा आस्तिक के दर्शन और पूजा करने के बाद से शुरू होते है।
साल में प्रत्येक छमाही नागपंचमी और सावन में गुड़ियों के त्योहार के समय मंदिर परिसर में मेले का आयोजन किया जाता है। मेले का आयोजन दो दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। मेले का आनंद लेने के लिए आसपास के गांव से हजारों की संख्या में लोग आते है। गुड़ियों के मेले में मंदिर परिसर में दंगल का आयोजन किया जाता है जहां बड़े बड़े पहलवान आकर अपने दमखम का परिचय देते हैं।
लोगों की पौराणिक कहानियां है की इस दिन आस्तिक बाबा कजरीवन से आकर स्वयं मंदिर में विराजमान रहते है और भक्तो को आशीर्वाद देते है इसके बाद वापस कजरीवन चले जाते हैं। नागपंचमी और गुड़ियों के त्योहार पर आस्तिक बाबा मंदिर में दूध और बताशे चढ़ाने की श्रद्धा है। लोगों की मान्यताएं हैं की आस्तिक बाबा को दूध बहुत पसंद है।
लोग दूध चढ़ाकर बाबा से आशीर्वाद लेते और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की अर्जी लगाते हैं। आज भी नागपंचमी के दिन आसपास के 12 गांव में लोगों के घरों पर खाना बनाने में छौंका या तड़का नही लगता है इस दिन लोगों के घरों पर साधारण बिना तेल का भोजन तैयार किया जाता है। जिसमे चावल, रोटी, दाल रहता है।
गुड़ियों के त्योहार पर लोग सुबह के समय गेंहू और चने को उबालकर खाते हैं जिसे "कोहरी" कहते है। और दोपहर के समय चने की दाल, रोटी और चावल बनाते है। आस्तिक बाबा के दर्शन साल के किसी भी मौसम में करने के लिए जा सकते हैं। लेकिन यदि आप नागपंचमी में दर्शन करने जाते है तो ज्यादा शुभ माना जाता है।
क्षेत्रीय लोगों का कहना है प्राचीन समय में सर्पदंश से मुक्ति पाने के लिए लोग मंदिर में आस्तिक बाबा की पूजा करके और मंदिर प्रांगण में लेटने से ही ठीक हो जाते थे। लेकिन आज के वैज्ञानिक दौर में यह बात कितनी सच है यकीन करना मुश्किल हो जाता है। घाटमपुर से 12 किमी दूरी जहानाबाद परास मार्ग द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं।
आस्तिक मुनि बाबा कौन है?
आस्तिक बाबा एक महान ऋषि थे उनके पिता का नाम जरत्कारू और माता का नाम मनसा था। भगवान शिव और माता पार्वती आस्तिक मुनि बाबा के नाना-नानी है। गर्भावस्था के दौरान माता मनसा भगवान शिव के साथ कैलाश चली गई। कैलाश पर्वत पर भगवान शिव ने गर्भ में ही आस्तिक बाबा को धर्म और ज्ञान का उपदेश दिया जिसकी वजह से उनका नाम आस्तिक पड़ा।
एक बार की बात है जब कुरूवंश के राजा जनमेजय के पिता परीक्षित को सांप ने काट लिया जिसकी वजह से उनकी मृत्य हो गई। पिता की सर्पदंश से मृत्यु हो जाने के कारण राजा जनमेजय ने क्रोध में आकर सर्प यज्ञ प्रारंभ करके सांपो को मारना शुरू कर दिया। अंत में तक्षक नाग की बारी आई जिससे घबराकर तक्षक भगवान इंद्र के पास चले गए।
नाग यज्ञ की बात जब आस्तिक मुनि के पिता को इंद्र भगवान के द्वारा पता चली तो उन्होंने आस्तिक बाबा को नाग यज्ञ रोकने के लिए भेजा। राजा जनमेजय के यज्ञ स्थल में पहुंचकर विनम्रता पूर्वक आस्तिक मुनि ने सर्प यज्ञ रोकने का आह्वाहन किया। आस्तिक बाबा की बात सुनकर राजा जनमेजय मान गए और उन्होंने सर्प यज्ञ बंद कर दिया।
सर्प यज्ञ बंद हो जाने के बाद सांप काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने आस्तिक बाबा का धन्यवाद किया और वचन दिया की जो भी आस्तिक बाबा की पूजा अर्चना श्रद्धाभाव से करेगा हम उसे कभी परेशान नहीं करेंगे। जिस समय नाग यज्ञ बंद हुआ था उस दिन पंचमी थी। इसीलिए आज भी नागपंचमी को आस्तिक बाबा पूजे जाते हैं। लोगों की आस्था है की आस्तिक बाबा के दर्शन करने से सर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
घाटमपुर में घूमने जाने का अच्छा समय
घाटमपुर में माता कुष्मांडा देवी के दर्शन करने के लिए आप कभी भी जा सकते हैं। लेकिन नवरात्रि के समय कुष्मांडा देवी मंदिर में पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए घाटमपुर में यदि घूमने का प्लान बना रहें हैं तो नवरात्रि के समय जरूर जाए और मां कुष्मांडा देवी के दर्शन जरूर करें। मान्यता है की कुष्मांडा देवी मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाती है वह आवश्य पूर्ण होती है।
घाटमपुर कैसे पहुंचे (How To Reach Ghatampur)
घाटमपुर में घूमने जाने के लिए ट्रेन और सड़क मार्ग दोनों तरह के माध्यम हैं। Ghatampur जानें के लिए आप कानपुर नौबस्ता चौराहे से बस, टैक्सी, ऑटो के माध्यम से जा सकते है साथ ही वाहन बुक करके भी जा सकते है। नौबस्ता चौराहे से घाटमपुर 34 किलोमीटर दूर है।
घाटमपुर रेलवे स्टेशन ट्रेन से पहुंचने के लिए सुलभ साधन है। ट्रेन से जाने के लिए आप कानपुर घंटाघर रेलवे स्टेशन से ट्रेन पर जा सकते है। और गोविंदनगर रेलवे स्टेशन से भी ट्रेन पकड़ सकते हैं। घाटमपुर के सबसे निकट एयरपोर्ट चकेरी एयरपोर्ट है। जहा इंडिगो और स्पाइसजेट की रोजाना फ्लाइट आती जाती रहती हैं।
घाटमपुर पावर प्लांट प्रोजेक्ट (Ghatampur Power Plant Project)
Ghatampur में नवेली लिग्नाइट और उत्तर प्रदेश विद्युत उत्पादन लिमिटेड द्वारा 1980 मेगावाट की परियोजना में काम चल रहा है। इससे घाटमपुर और उसके आस पास के जिलों में बिजली की समस्या कम हो जायेगी।
घाटमपुर के आसपास घूमने की जगह
FAQs
1. घाटमपुर कहां पर है?
घाटमपुर भारत में उत्तरप्रदेश राज्य के कानपुर जिले में स्थित तहसील है।
2. घाटमपुर कितने किलोमीटर है?
कानपुर नौबस्ता चौराहे से घाटमपुर लगभग 35 किलोमीटर है। नौबस्ता चौराहे से घाटमपुर के लिए बस, मैजिक बड़ी संख्या में चलती हैं। इसके अलावा आप अपने निजी वाहन बाइक या कार से 1 घंटे में पहुंच जायेंगे।